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Saturday, 14 April 2012

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1 comment:

  1. आशीर्वाद देने मे, भी पैसे लगते है
    वाह रे कलयुग, कैसी तेरी माया है
    ठँडी छाँव भी ,जेठ गर्म सी लागे है
    वाँह ओ-निगेटव-खून ऐसी भाषा है
    ----------------०-----------------
    सकुचाहट सुदामा की, सब व्यर्थ है
    पैसा अन्टी मे हो, तभी तो स्वर्ग है
    अपनी कमाई तो,अन्टी की गाँठ है
    बाप की कमाई तभी तो सब ठाठँ है
    ---------------०-----------------
    बाप कुछ मागे तो, हिसाब नही है
    कोई और कुछ कहे,हिजाब नही है
    छोड जाऐ सब कुछ,किताब नही है
    मँजुल से सपने का, जवाब नही है
    ----------------०------------------
    बिन जमा पूँजी,यूँ स्वामी बनते है
    दहेज का समान , बनकर ठगते है
    भरा हुआ पेट,पर भौखकर डराते है
    बेज्जत-इज्जत,का ड्रामा चलाते है
    -----------------०---------------
    झूठेभी देखो यूँ,हरीशचन्द्र बनते है
    सकोची सुदामा से,विश्रृव जलते है
    विश्रृवाँ मम्-वसुन्घरा,से जलता है
    दिनेश मँजुल बस,हो खडे हँसता है

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